Petrol Diesel Price Today : सरकार ने एक नया ऐलान किया है जो हर उस इंसान को जानना ज़रूरी है जो गाड़ी चलाता है या ट्रांसपोर्ट से जुड़ा है। अब 8 अप्रैल 2025 से पेट्रोल और डीजल पर 2-2 रुपए प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी गई है। यानी अब जब आप पेट्रोल पंप पर गाड़ी भरवाने जाएंगे तो हो सकता है कि आपको थोड़ा ज़्यादा पैसे देने पड़ें।
हालांकि, सरकार का कहना है कि इससे आम आदमी की जेब पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अब ये तो वक्त ही बताएगा, लेकिन आइए समझते हैं कि आखिर ये फैसला क्यों लिया गया और इसका असर किन-किन लोगों पर पड़ सकता है।
क्यों बढ़ी एक्साइज ड्यूटी?
पिछले कुछ समय से दुनिया भर में तेल की कीमतों में काफ़ी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। अमेरिका और कुछ दूसरे देशों के बीच चल रही टैरिफ वॉर यानी व्यापारिक खींचतान की वजह से इंटरनेशनल मार्केट में तेल की क़ीमतें काफी अस्थिर हो गई हैं। ऐसे माहौल में भारत जैसे देश को भी अपने इकोनॉमिक बैलेंस को संभालना होता है।
सरकार का कहना है कि ये एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने का फैसला इसलिए लिया गया ताकि देश के अंदर तेल की कीमतों को स्टेबल रखा जा सके और साथ ही सरकारी खजाने में थोड़ा और पैसा भी आ सके। सरकार ये भी कह रही है कि इससे आम लोगों को सीधा नुकसान नहीं होगा, क्योंकि डीलर्स और कंपनियां इस बढ़ोतरी को अपने तरीके से मैनेज करेंगी।
क्या वाकई आम आदमी पर असर नहीं पड़ेगा?
अब बात करते हैं उस सवाल की जो हर किसी के मन में है — क्या इससे हमें ज़्यादा पैसे चुकाने पड़ेंगे? सीधे तौर पर देखा जाए तो अगर सरकार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाती है और कंपनियां उसका बोझ उपभोक्ता यानी हम लोगों पर डालती हैं, तो पेट्रोल-डीजल के रेट बढ़ेंगे ही।
और अगर पेट्रोल-डीजल महंगे हुए, तो असर सिर्फ आपकी गाड़ी की टंकी तक नहीं रहेगा। ट्रांसपोर्ट की लागत बढ़ेगी, यानी सामान ढुलाई महंगी हो जाएगी, और इसका मतलब है कि सब्ज़ी से लेकर कपड़े तक — सब कुछ थोड़ा-थोड़ा महंगा हो सकता है।
खासतौर पर वो लोग जो रोज़ाना गाड़ी चलाते हैं या जिनका काम ट्रांसपोर्ट, डिलीवरी या खेती से जुड़ा है, उनके खर्चे में सीधा असर देखने को मिल सकता है।
किन-किन सेक्टर्स पर पड़ेगा असर?
इस फैसले का असर सिर्फ गाड़ियों या पेट्रोल पंप तक सीमित नहीं रहेगा। बहुत सारे ऐसे इंडस्ट्रीज़ हैं जो पेट्रोल-डीजल पर बहुत ज़्यादा निर्भर करते हैं:
- ट्रांसपोर्ट सेक्टर: ट्रकों और लॉजिस्टिक्स की लागत बढ़ेगी, जिससे हर चीज़ की डिलीवरी महंगी हो सकती है।
- कृषि क्षेत्र: ट्रैक्टर, पंप और मशीनें जो डीजल पर चलती हैं, उनकी ऑपरेटिंग कॉस्ट बढ़ेगी।
- निर्माण क्षेत्र (Construction): मिक्सर, क्रेन्स और बाकी मशीनों की लागत भी बढ़ सकती है।
जब इन क्षेत्रों की लागत बढ़ती है, तो आम जनता को उसका असर लंबे समय तक महसूस होता है।
सरकार का तर्क क्या है?
सरकार कह रही है कि ये फैसला सिर्फ टैक्स बढ़ाने के लिए नहीं है, बल्कि इसका मकसद देश की आर्थिक स्थिरता बनाए रखना है। इंटरनेशनल मार्केट में जब तेल की कीमतें हिलती हैं, तब घरेलू बाजार में प्राइस कंट्रोल करना ज़रूरी होता है।
इसके अलावा सरकार को रेवेन्यू यानी आमदनी की भी ज़रूरत होती है ताकि वो देश में विकास कार्यों और सब्सिडी वगैरह में खर्च कर सके। एक्साइज ड्यूटी बढ़ाना सरकार के लिए एक आसान तरीका होता है आमदनी बढ़ाने का।
अब आगे क्या?
अब देखना ये होगा कि पेट्रोल-डीजल की कीमतें वाकई में बढ़ती हैं या नहीं, और अगर बढ़ती हैं तो कितना असर पड़ता है आम जनता पर। कई बार ऐसा होता है कि कंपनियां कुछ दिनों के लिए कीमतें नहीं बढ़ातीं, लेकिन धीरे-धीरे उस बोझ को उपभोक्ताओं पर डाल देती हैं। इसलिए आने वाले हफ्तों में पेट्रोल पंप के रेट्स पर नज़र रखना ज़रूरी होगा। अगर आप गाड़ी चलाते हैं या किसी बिज़नेस में ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल होता है, तो थोड़ा-बहुत फर्क महसूस हो सकता है।
सरकार ने जो फैसला लिया है, वो इंटरनेशनल सिचुएशन को देखते हुए समझ में आता है, लेकिन इसका असर आम लोगों की जेब पर न हो — ये कहना अभी थोड़ा जल्दबाज़ी होगी। उम्मीद है कि सरकार और कंपनियां मिलकर ऐसे कदम उठाएं जिससे ज़्यादा बोझ जनता पर न पड़े, खासकर उन लोगों पर जिनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी इन ईंधनों पर निर्भर है।
अगर आप भी इस बदलाव से प्रभावित हो रहे हैं, तो कोशिश कीजिए कि फ्यूल की खपत थोड़ा कंट्रोल करें, और पब्लिक ट्रांसपोर्ट या कार पूलिंग जैसी चीज़ों पर ध्यान दें।